खबर विशेष 05

इंदौर की राष्ट्रीय स्पर्धा में शिक्षा माफिया का खेल


घोटाले को दबाने और जेडी को हटाने के लिए नित नए हथकंडे


घोटाले को दबाने जेडी पर गलत तरीके से पुनः टेंडर जारी कर पौने नौ लाख रुपए का भुगतान कर दिए जाने का आरोप लगाते हुए उनकी छवि बिगाड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं पूर्व डीईओ सी के शर्मा ने इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया है। दोनों ही अफसर अपने आपको सही बता रहे हैं । शिक्षा नायक ने इस पूरे मामले की पड़ताल दस्तावेजी सबूतों व शिक्षा विभाग के गलियारे में चल रही चर्चाओं को कसौटी पर कसते हए की है। पुरानी कहावत है कि सत्य परेशान हो सकता है पर कभी पराजित नहीं । मौजूदा स्थिति इंदौर शिक्षा कार्यालय पर सटीक बैठ रही है। एक उच्च पद पर बैठा अधिकारी पुराने भ्रष्ट अधिकारियों की गलती सुधारने में लगा हुआ हैसरकार जहां माफियाओं को लेकर सख्त है , वही शिक्षा माफियाओं से हारती नजर आ रही है । कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। यही स्थिति शिक्षा विभाग की भी है, जिसमें गलत को गलत कहने वाले एक अफसर के पीछे कई लोग पड़ गए हैं। बहरहाल जो भी हो इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच निष्पक्षता से होनी चाहिए तथा दोषियों को दंड भी मिलना चाहिए। 


शिक्षा विभाग छात्रों के मानसिक एवं शारीरिक विकास हेतु हर साल राज्य एवं राष्ट्र स्तरीय शालेय क्रीडा प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाता है। उपलब्ध दस्तावेजों से प्रकट होता है कि लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल ने 64 वी राष्ट्रीय प्रतियोगिता का दायित्व संभागीय संयुक्त संचालकों को सौपते हुए उन्हें संगठन सचिव नियुक्त किया। इसके साथ ही 28 सितंबर 18 को प्रतियोगिता संचालन हेत 16 लाख रुपए की वित्तीय स्वीकृति संयुक्त संचालक इंदौर को प्रदान की गईमनीष वर्मा ने 10 अक्टबर 2018 को संयुक्त संचालक इंदौर संभाग का कार्यभार संभाला। ज्वाइंट डायरेक्टर के सामने शिक्षा की गणवत्ता और विभागीय योजनाओं को लेकर कई चुनौतियां थी। शिक्षा के कई पैमानों पर पिछड़े संभाग की दशा सुधारने के साथ संभागीय स्कूलों के निरीक्षण को प्राथमिकता देते हुए जेडी ने प्रतियोगिता का दायित्व जिला शिक्षा अधिकारी को सौंपने के लिए लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त को लिखानवंबर माह में किए गए निवेदन पर भोपाल ने 4 दिसंबर को आदेश जारी किएआदेश में 64 वी राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता का दायित्व जिला शिक्षा अधिकारी को सौंपा गया। बड़े शासकीय अमले के साथ डीओशहर के भौगोलिक क्षेत्र से भी परिचित थे। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी सी के शमी ने आदेश को दरकिनार करते हुए प्रतियोगिता या। डाआ न खराब तबायत आर असमथता का हवाला देते हुए प्रतियोगिता की जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ते हए 5 दिसम्बर 2018 को आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय से प्रतियोगिता का संचालन एवं आयोजन संयुक्त संचालक मनीष वर्मा से ही कराने का निवेदन किया। तदुपरांत ज्वाइंट डायरेक्टर ने सत्यापन समिति और क्रय समिति का गठन कर प्रतियोगिता की तैयारियां शुरू कर दी जिस तरह अल्पकालीन निविदा सूचना निकाली गई , उसी से पता चलता है कि जेडी को बहुत ही कम समय में एक राष्ट्रीय स्पर्धा की तैयारी करनी पड़ी इसके बावजूद उन्हान कड़ा निावदा शता क साथ टडर जारी किए। समझा जा सकता है कि इन कड़ी शर्तों के चलते शिक्षा माफिया और उसके चहेतों के हाथ पैर फूल गए होंगे क्योंकि उन्हें यह टेंडर तश्तरी में परोसा हुआ नहीं मिला । यहां यह सवाल भी खड़ा होता है कि जिला शिक्षा अधिकारी अगर टेंडर जारी कर अगर गुरुकृपा पर कृपा कर सकते थे तो, उन्हें प्रतियोगिता कराने में आखिर हर्ज क्या था I  गौरतलब हे कि इसके पूर्व 61 वी 62 वी व 63 वी राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता जिला शिक्षा अधिकारी ने ही संपन्न करवाई थी I


प्रतियोगिता के रिकॉर्ड कि जांच में खुली पोल - संयुक्त संचालक मनीष वर्मा द्वारा पुरानी प्रतियोगिताओं के रिकॉर्ड की जांच करने पर कई गड़बड़ियां सामने आई। दरअसल जब उन्हें क्रीड़ा अधिकारी लोक शिक्षण हेमंत वर्मा से कोई जानकारी नहीं मिली तो जॉइंट डायरेक्टर ने डीओ से जानकारी मांगी। जिला शिक्षा अधिकारी सी के शर्मा द्वारा 20 जुलाई को खेल प्रतियोगिताओं एवं अन्य गतिविधियों के संबंध में चार बार निविदाएं जारी कर गुरु कपाटेंट हाउस एवं लाइट डेकोरेटर कमला नेहरू नगर को विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं एवं अन्य गतिविधियों में आवासीय एवं अन्य वस्तुओं के प्रबंधन हेतु 31 जुलाई 2018 को टेंडर दे दिया गया। जिला अधिकारी द्वारा जारी किए गए टेंडर में प्रतियोगिता की स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि वह कौन सी प्रतियोगिता के लिए टेंडर जारी कर रहे हैं। इसके साथ ही संभावित प्रतिभागी खिलाड़ियों की संख्या, प्रतियोगिता दिनांक का भी जिक्र नहीं था। सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब 64वी प्रतियोगिता संयुक्त संचालक को मिली थी, तो फिर जिला शिक्षा अधिकारी ने अपने कार्यालय से पहले ही टेंडर कैसे जारी कर दिए ? इसका अधिकार उन्हें किसने दिया? प्रतियोगिता दिनांक जारी होने के पहले निविदाएं क्यों निकाली गई । क्या जिला शिक्षा अधिकारी पहले से जानते थे कि कितने प्रतिभागियों के लिए टेंडर जारी होना है और कबया फिर गुरु कपा टेंट हाउस पर यह विशेष कपा की गई है। संभवतः इसलिए उन्हें चार बार निविदा निकालनी पडी कि जब तक गरुकपा सिलेक्ट ना हो जाए निविदाएं निकालते रहेंगे I


संयुक्त  संचालक द्वारा जिलाधिकारी से प्राप्त परानी निविदाओं की जानकारी मांगे जाने पर उन्हें न तो क्रय समिति की जानकारी मिली और न ही दैनिक समाचार मे प्रकाशित निविदा सचना के पुख्ता सबुत मिले। क्रय समिति की जानकारी मांगे जाने पर डीओ कथित तौर पर जिला क्रीडा अधिकारी रश्मि दीक्षित के अवकाश पर चले जाने के कारण उपलब्ध नहीं करा पाएजाहिर है कि प्रतियोगिता दिनांक आने से पहले ही जारी किए गए टेंडर परसवालिया निशान खडे हो रहे हैं I


 जिला शिक्षा अधिकारी ने प्रतियोगिता मिलने के पहले कैसे एजेंसी फाइनल कर दी ? - टेंडर प्रक्रिया पर आपत्ति लेते हुए तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सी के शर्मा ने जेडी को अवगत कराया कि कार्यालय ने पहले ही इस प्रकार के काम के लिए एजेंसी फाइनल कर रखी है। इस बिंदु पर यह प्रश्न उठता है कि प्रतियोगिता मिलने से पहले ही जिला शिक्षा अधिकारी ने नए टेंडर कैसे जारी कर दिए ? जब राष्ट्रीय प्रतियोगिता डीओ को मिली ही नहीं थी,तो उन्होंने निविदाएं किस आधार पर जारी कर दी? इस मामले में तो जादूगरी से जारी किए गए टेंडर को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से जवाब मांगा जाना चाहिए।


       लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त जयश्री कियावत ने संयुक्त संचालक लोक शिक्षण मनीष __ वर्मा के निवेदन पर 4 दिसंबर को जिला शिक्षा अधिकारी को 64वी राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता का दायित्व सौंपा था। तो उसके पूर्व 20 जुलाई को डीओ के द्वारा निविदाएं कैसे जारी कर दी गई और टेंडर 31 जुलाई को गुरु कृपा टेंट हाउस एवं लाइटडेकोरेटर को किस आधार पर मिल गया।


       64वी राष्टीय खेल प्रतियोगिता के लिए नए सिरे से जारी किया गया टेंडर सांवरिया टेंट हाउस को मिला निर्धारित समय के बाद देरी से टेडर भरने के कारण गरु कपाटेंट हाउस की निविदा को अस्वीकार कर दिया गया I


       शिकायत नहीं भौतिक सत्यापन के आधार पर टेंट हाउस व अन्य को किया कम भुगतान- 64 वीं राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के लिए संयुक्त संचालक इंदौर को 16 लाख रुपए की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की गई थी। खेल प्रतियोगिता पूरी होने के बाद सांवरिया टेंट हाउस को भौतिक सत्यापन के आधार पर लगभग 8 लाख 46 हजार का भुगतान किया गया। जबकि टेंट हाउस ने 12 लाख 30 हजार रुपए का बिल सत्यापन करते हुए 4 लाख रुपया शिक्षा विभाग का बचाया ही है। कछ भ्रष्ट अफसरों और माफिया को मिर्ची इसीलिए लग रही है कि यह चार लाख रुपए उनकी भ्रष्ट जेब में जाने से रह गया । सही मायने में सरकारी पैसा बचाने को लेकर जेडी का सम्मान होना चाहिए था परंतु जहां भ्रष्टाचार की दीमक लग गई हो वहां ऐसी उम्मीद भी कैसे की जा सकती है। परिवहन व्यवस्था के लिए कुल 31 बसों का उपयोग किया गया। चालक को 150 रुपए प्रतिदिन एवं 10/प्रति किलोमीटर की दर से डीजल की प्रतिपूर्ति की गई। प्रमाण पत्रों की प्रिंटिंग पर कुल 4660/- का भुगतान किया गया। सफाई व्यवस्था देख रहे 38 कर्मचारियों को 150 रुपए प्रतिदिन की दर से भुगतान किया गया। निविदा सूचना प्रकाशन के लिए एक दैनिक समाचार पत्र को 6552/- का भुगतान की अनुशंसा की गई क्रय समिति और संयुक्त संचालक के मार्गदर्शन में भौतिक सत्यापन के आधार पर ही अन्य भुगतान किए गए।


चुनाव आचार उल्लंघन का मामला - वार्षिक परीक्षा एवं खेल प्रतियोगिता जैसे नियमित कार्य का आयोजन आचार संहिता का उल्लघन कैसे कर सकते हैं। 64 वीं राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता की स्वीकृति अगस्त में ही मिल चुकी थी। स्कूल में पढ़ने वाले छात्र को किसी राजनीतिक दल से कैसे जोड़ा जा सकता है। 64 वी राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के पहले भी कई राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता आयोजित की गई है। खेल प्रतियोगिता बोर्ड परीक्षाओं की तरह होने वाले नियमित कार्यों की श्रेणी में आते हैं। स्कूली छात्र प्रतिभागी मतदाता को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। वैसे भी खेल प्रतियोगिता के पूर्व ही चुनाव के लिए मतदान और मतगणना दोनों संपन्न हो चुके थे।


शिक्षा माफियाओं के आंख का कांटा बने मनीष वर्मा - शिक्षा विभाग के गलियारे में चर्चा है कि 191 में से 163 स्कूलों की मान्यता निरस्त करने वाले संयुक्त संचालक मनीष वर्मा को शिक्षा माफिया के भैया लोग जल्द से जल्द इंदौर से हटाना चाहते हैं। क्योंकि वह उनके अनसार काम नहीं कर रहे एवं फर्जी स्कूलों को मान्यता नहीं दे रहे है । जैसा पहले होता रहा था।शिक्षा को धधा बनाने वाले शिक्षा माफिया चाहते हैं कि जल्द से बनाने वाले शिक्षा माफिया जल्द मनीष वर्मा किसी भी कारण इंदौर से हटा दिये जाएं। इसके लिए जोड़-तोड़ की राजनीति के साथ पैसे का वजन भी बढ़ गया है।इसलिए नए-नए प्रयोगों से उन्हें हटाने की साजिश रची जा रही है। नए राजनीतिक समीकरण के आगे शिक्षा माफिया कितने कामयाब होते हे यहाँ तो इंदौर संभाग के छात्रों का भाग्य ही तय करेगा